मेरी पाठशाला
मेरी पाठशाला

मेरी पाठशाला 

विद्या बहुत आवश्यक होती है। विद्या विना मनुष्य प्रगति नहीं कर सकता। हमारे पूर्वजों ने कहा है -
विद्या परा देवता।

अर्थात् विद्या ही परम देवता है।  परंतु आजकल विद्यार्जन करना जितना सरल है उतना पुराने ज़माने में नहीं हुआ करता था। विद्यार्थी गुरुकुल जाते थे। उस वक्त विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर गुरु सेवा किया करते थे और पढ़ते थे। लेकिन आजकल गुरुकुल तो गिने-चुने ही बचे हुए हैं। अधिकतर छात्र पाठशाला में पढ़ते हैं। मैं भी हर रोज पाठशाला जाता हूँ। मुझे मेरी पाठशाला बहुत अच्छी लगती है। 


मेरी पाठशाला का नाम

मेरी पाठशाला का नाम चिन्मय विद्यालय है। मेरी पाठशाला दिल्ली महानगर में हैं। मेरी पाठशाला महानगर से बाहर किंचित दूर है। और वातावरण रमणीय है।


पाठशाला की वास्तु

मेरी पाठशाला बहुत बड़ी है। वहां अनेक कक्ष हैं। विस्तीर्ण मैदान है। मैदान में एक बगीचा भी है। एक पुस्तकालय भी है। पुस्तकालय में हर तरह की किताबें, ग्रंथ, समाचार पत्र, मासिक पत्रिकाएं हैं। और दूसरी जगह पर आधुनिक उपकरणों से सजी हुई संगणक शाला (कंप्यूटर लैब) भी है जिसमें अनेक संगणक हैं। जहाँ हम सब आधुनिक संगणकीय तन्त्र सीखते हैं।


मेरी पाठशाला के शिक्षक

मेरी पाठशाला में भाषा, गणित, विज्ञान, इतिहास आदि विषयों को पढ़ाया जाता है। और मेरी पाठशाला में अनेक शिक्षक इन विषयों को पढ़ाते हैं। कुल मिलाकर उनकी संख्या पचहत्तर (७५) है।  पाठशाला में विद्यार्थी पढ़ते हैं और शिक्षक अच्छे से पढ़ाते हैं। गुरुपूर्णिमा तथा शिक्षक दिवस के अवसर पर हम शिक्षकों की पूजा करते हैं। उनसे आशीर्वाद लेते हैं। मैं अपने सभी शिक्षको से स्नेह करता हूँ।


शिक्षकों का सिखाना

हमारे सुस्वभावी शिक्षक बहुत प्रेम से सिखाते हैं। सभी शिक्षक ज्ञानवान हैं। हमारे शिक्षक केवल सिखाते ही नहीं, बल्कि अच्छा मार्गदर्शन करते हैं। जीवन के लिए आवश्यक गुणों का पोषण करते हैं। दुर्गुणों को दूर करते हैं। शिक्षक छात्रों पर पितृवत् स्नेह करते हैं।

हमारे मुख्याध्यापक

मेरी पाठशाला के शिक्षकों में से श्री॰ चंद्रमोहन जी पाठशाला के मुख्याध्यापक हैं। वे अति दयालु हैं। तथापि बहुत अनुशानप्रिय भी हैं। बहुत बार वे बीच-बीच में कक्षा में आकर मार्गदर्शन करते हैं। वे हमारी पाठशाला का नियन्त्रण और देखभाल करते हैं।

पाठशाला का दिनक्रम

हमारी पाठशाला का आरंभ ११.०० बजे होता है। घंटी बजते ही सभी छात्र मैदान में एकत्रित होते हैं। एकत्रित हो कर सभी छात्र प्रार्थना करते हैं और राष्ट्रगीत गाते हैं। उसके बाद सभी विद्यार्थी अपनी अपनी कक्षाओं में जाते हैं।

कक्षा में वर्गशिक्षक आते हैं। सभी छात्र उनको प्रणाम करते हैं। शिक्षक छात्रों को आशीर्वाद देते हैं और शिक्षक छात्रों की उपस्थिति दर्ज करते हैं। और पाठ आरंभ होता है। एक के बाद एक ऐसे लगातार तीन पाठ होते हैं। तीन पाठ होने के बाद भोजन की छुट्टी होती है। उस में सभी विद्यार्थी मिल कर खाना खाते हैं। बाद में फिर से पाठ आरंभ होते हैं। पुनः तीन पाठ होते हैं और एक बार फिर छोटा अवकाश होता है। और बाद में अन्तिम दो पाठ होते हैं। अन्तिम पाठ के अन्त में प्रार्थना के साथ विसर्जन होता है। तथा सभी छात्र घर जाते हैं।

मेरी पाठशाला की पढ़ाई


भाषा

हमारी पाठशाला में पांच भाषाएं पढ़ाई जाती है - अंग्रेज़ी, मराठी, कन्नड़, हिन्दी और संस्कृत। इन भाषाओं में से अंग्रेज़ी को सभी विद्यार्थी अनिवार्य रूप से पढ़ते हैं। द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी अथवा संस्कृत इन दोनों में से भाषा पढ़नी होती है। और क्षेत्रीय भाषा के रूप में मराठी अथवा कन्नड़ इन दोनों में से एक।


अन्य विषय

गणित, विज्ञान तथा सामाजिक शास्त्र इत्यादि विषय भी पढ़ाए जाते हैं। इन विषयों के शिक्षक कक्षाओं में अपने अपने विषयों को पढ़ाते हैं। साथ ही साथ प्रात्यक्षिक के लिए बहुत बार प्रयोगशाला में भी लेकर जाते हैं। हमारी पाठशाला की प्रयोगशाला सुसज्जित और आधुनिक है। प्रयोगशाला में हम अलग-अलग यंत्रों से, रसायनों से और पदार्थों से प्रयोग करते हैं।

इनके अलावा योग, क्रीडा, चित्रकला और संगीत आदि विषय भी पढ़ाए जाते हैं। जिनसे मन और शरीर का अच्छा विकास होता है। इन विषयों में से मुझे संगीत बहुत अच्छा लगता है।

शैक्षिक पर्यटन

वर्ष में एक बार हमारे शिक्षक हमें शैक्षिक पर्यटन के लिए लेकर जाते हैं। अपने अपने विषय के अनुरूप हमारे शिक्षक अलग अलग जगहों पर हमें लेकर जाते हैं। जैसे कि - ऐतिहासिक स्थलियां, कारखाने, बाज़ार, खेत, वन आदि। हम कक्षा में जो पढ़ते हैं उसे प्रत्यक्ष देखकर बहुत आनंद होता है।


मेरी पाठशाला में उत्सव

भारत उत्सवप्रिय देश है। हमारी पाठशाला में भी अलग-अलग प्रकार के राष्ट्रीय और सांस्कृतिक उत्सव मनाए जाते हैं।


त्यौहार

स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस, होली, गुरुपौर्णिमा, वसन्तपंचमी, ख्रिसमस्, बुद्धपौर्णिमा, महावीरजयन्ती, ईद् आदि त्यौहार हमारी पाठशाला में मनाए जाते हैं। दिवाली में छुट्टियां होती है, फिर भी छुट्टियों से पहले ही यह त्यौहार पाठशाला में मनाया जाता है।


महापुरुषों के दिवस

महापुरुषों की जयंती तथा पुण्यतिथि मनाई जाती है। जैसे कि - महात्मा गान्धी, स्वामी विवेकानंद, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, पं॰ नेहरु, महात्मा फुले, छत्रपति शिवाजी, डॉ॰ आम्बेडकर आदि महापुरुषों की जयंती हो अथवा पुण्यतिथि, उस दिन पाठशाला में उत्सव मनाया जाता है।


हिन्दी पखवाड़ा

हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है। हर वर्ष पाठशाला में सितंबर महीने में हिन्दी पखवाड़ा मनाया जाता है। इस दौरान सभी विद्यार्थी हिंदी में ही बोलते हैं। हिन्दी पखवाड़े में हिन्दीपरीक्षा, कविताएं, नाटक आदि उपक्रमों का आयोजन होता है। हम नगर में जाकर हिंदी भाषा में पथनाट्य भी करते हैं। जिससे हिन्दी भाषा के बारे में जनजागृति होती है।


मेरी पाठशाला का वार्षिक महोत्सव

वर्ष में एक बार पाठशाला का वार्षिक महोत्सव होता है। वार्षिक महोत्सव में विद्यालय के सभी छात्र, शिक्षक और अभिभावक आते हैं। उस महोत्सव में पाठशाला के सभी छात्र अपने अपने कला गुणों का प्रदर्शन करते हैं। जैसे कि - नृत्य, गीत, नाटक, भाषण वगैरह। महोत्सव के अंत में सहभोजन का आयोजन किया जाता है। उस में हम सब भोजन के साथ साथ अपना प्रेम बांटते हैं।


पाठशाला में मेरे मित्र

मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता हूँ। मेरी कक्षा में वैसे तो अनेक छात्र पढ़ते हैं। वे सभी मेरे मित्र हैं। तथापि उन मित्रों में निखिल, विश्वास और इंदुशेखर मेरे परम मित्र हैं। मैं अपने मित्रों के साथ पढ़ता हूँ, खेलता हूँ, बातें करता हूँ। मेरे मित्र शाम को मेरे घर आते हैं। कभी कभी मैं भी उनके घर जाता हूँ। हम सब एक साथ गृहकार्य करते हैं। मुझे उनके साथ पढ़ना और खेलना अच्छा लगता है। 


मेरा दूसरा घर - मेरी पाठशाला

पाठशाला मुझे अपने घर जैसी है। जिस प्रकार घर में माता-पिता स्नेह करते हैं, वैसे ही पाठशाला में शिक्षक पितृवत् स्नेह करते हैं। जैसे घर में भाई बहन होते हैं वैसे ही पाठशाला में मित्र बन्धुवत् स्नेह करते हैं। जिस प्रकार घर में माता-पिता भोजन दे कर शरीर का पोषण करते हैं वैसे ही पाठशाला में शिक्षक ज्ञान से बुद्धि का पोषण करते हैं। पाठशाला में शिक्षक जो ज्ञान देते हैं उस से हमारा जीवन प्रकाशमान हो जाता है। जैसे माता-पिता प्रेम से हृदय का पोषण करते हैं वैसे ही पाठशाला में शिक्षक और मित्र मन का पोषण करते हैं।

मुझे मेरी पाठशाला बहुत अच्छी लगती है।
..........

अन्य भाषाओं में यह निबन्ध पढ़िए -